Sunday, August 2, 2020
सेठ घनश्याम दास खेतान बाल विद्या मंदिर के किस्से
मैं नया नया आया था स्कूल में. कक्षा 2 में था मैं.
मुझे पापा ने नया बस्ता और नया पेंसिल बॉक्स दिलाया था. पेंसिल बॉक्स को हम औजार बक्सा कहते थे. वही जिसपे फोटो लगी होती थी, एक सैनिक बन्दूक चलाता हुआ. याद आया?
रेनू सिस्टर की क्लास ख़त्म हुई थी, अभी अगली क्लास का टाइम होने वाला था कि मैंने देखा मेरा औजार बक्शा पडोसी के डेस्क में. उस पडोसी का नाम नहीं याद अब.
मैंने आव देखा न ताव बोला "हमारा है बक्शा हमको दो".
सामने से जवाब आया "नहीं ये हमारा है"
इतना बहोत था उस उम्र को रुलाने के खातिर, दोनों के आंसू बॉर्डर लाइन पे और गला आधा भरा हुआ.
फिर दोनों ने फिर से प्रयास किया और,
"हमारा है बक्शा हमको दो न, हमारे पापा कीन के ले आये हैं"
"नहीं ये हमारा है"
इससे पहले कि आंसुओ का सैलाब आता. एक फरिश्ता पीछे से मस्त घूमता टहलता आया और बोला तुम लोग अपना अपना बस्ता देखो न पहले।
मेरा बक्सा वही मेरे बस्ते में ही था। कट्टी होते होते बच गयी।
आपका भी हो कोई किस्सा तो हमें लिख भेजिए "merapadrauna@gmail.com" पे।
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